Thursday, November 5, 2009

नही डरते

क्या हमने कह दिया, क्यूँ रूष्ट हमें बतलाओ भी
ठहरो, सुन लो बात हमारी, तनक ना जाओ, आओ भी
रूठ गए तुम, नहीं सुनोगे, अच्छा! अच्छी बात हुई
सुहद, सदय, सज्जन, मधुमुख थे मुझको अबतक मिले कई
सबको था दे चुका, बचे थे उलाहने से तुम मेरे
वह भी अवसर मिला, कहूँगा ह्रदय खोल कर गुण तेरे
कहो ना कब बिनती थी मेरी सच कहना कि "मुझे चाहो"
मेरे खोल रहे हत्सर में तुम भी आकर अवगाहो
फिर भी, कब चाहा था तुमने हमको, यह तो सत्य कहो
हम विनोद की सामग्री थे केवल इससे मिले रहो
तुम अपने पर मरते हो, तुम कभी ना इसका गर्व करो
कि "हम चाह में व्याकुल हैं" यह गर्म साँस अब नहीं भरो
मिथ्या हे हो, किन्तु प्रेम का प्रत्याखान नहीं करते
धोका क्या है, समझ चुके थे; फिर भी किया, नहीं डरते

Friday, January 9, 2009

मन हो गया बावरा

मन हो गया मेरा ये बावरा
रहता नहीं मेरी मुट्ठी में अब
बादलो संग फिरता है ये
जाने किस अंगना चला जाये ये कब

कभी खेत खलियानों में फिरता
कभी नदिया की लहरों पर सवार
उथल पुथल मचाता ये रहता तन में
न जानू अब क्या है इस मन में

कभी ये मिलता समुन्द्र के उर पर
कभी हिमालय की चोटी पर
नहीं घबराता तूफानों से भी
जाने कहा कहा भटकता ये मन

ये मदमस्त हवा के साथ लहराता
बिजली वीणा के तारो पर झूमता
मेरी वर्जना न सुन पता अब ये
अपने रंग में हे रम रहता अब ये

Saturday, November 1, 2008

Shayari : Pyar mohabbat related..

1.

Wo chodd kar kya gaye hame ki hamari saansein hi tham gayi

Jism moorat ban gaya aur nigahein num ho gayi

Dimag ne dil se pucha itna he pyar tha roka kyun nahi apne deedar ko

Dil ka jawab tha agar shabdon mein bayaan hota to juban par kabka la chuka hota apne pyar ko ;)



2.

Muskurate the jinki yaad main

Unhone rona sikha diya

Waise bhi kya gum kam the

Unhone ek gum aur badha diya

Gujarish hai unse kuch "fund" to kare

Kya faltu main in ashuo ke liye ek balti ka kharcha aur badha diya.. :)



एक सच्चाई : कटाक्ष आई आई टी के प्रोफ्स पर

स्माल कोन्वेर्सशन बेत्वीन ओउर प्रोफ एंड स्टुडेंट in माय स्टाइल


Nishant: Banda mai theek hoon

Ek number ka dheet hoon

Question mera right hai

apko kya fight hai.

Daddu: process to aanek hai

par method iska ek hai

Solution mera theek hai

aur ye he satik hai.

Nishant: Baki mai janta nahi

apki baat main manta nahi

refrigration bhi to yahi hai

yani mera answer sahi hai.

Daddu: Apki baat main dum hai

mere mai dimak thoda kam hai

mai is par vichar karunga

aur sahi hua to marks dunga.

Thursday, October 30, 2008

क्या मैं ऐसा ही था !

कभी यूँ ही अंतर्मन में झाककर देखता हूँ तो डर जाता हूँ भीतर के इस अंधकार से
सोचता हूँ क्या मैं ऐसा ही था जो मैं अब हूँ

मैं अपने इस रूप से कभी परिचित न था
मन में इतनी ईर्ष्या, इतना क्रोध, इतना दर्द कब से
मैं जान न सका
क्या मैं ऐसा ही थI !

याद आते हैं बचपन के वो दिन जब रो पड़ता था मैं किसी के चीखने भर से
पर आज दर्द का सेलाब लिए फिरता हूँ मन मैं पर आँखों में नमी तक नहीं

खिलखिलाते हुए बचपन के वो चहेरे
वो मशुमियत भरी बातें होठो पर
शायद ईर्ष्या , क्रोध क्या होता है जनता तक न था

सोचकर बचपन की वो बातें रो पड़ता हूँ अपने इस अश्तित्वा को भूलकर
पर मन मैं हमेसा ही एक प्रशन रहता है
क्या मैं ऐसा हे था!

पूछता हूँ अपने आप से आखिर क्यूँ और किसने बनाया मुझको ऐसा
दोष नहीं देता हूँ दुसरो को शायद गलती मेरी थी मैं ही समझ
नहीं पाया था इस संसार को
जो ढल गया इसकी रंगत में

कसूर नहीं था इसमें किसी का
मैं हे नहीं रोक पाया था अपने आप को इस अंधकार से
पर मैं ऐसा कभी न था समझ गया हूँ
शायद जो मैं अब हूँ वही जीवन के नए माएने
और इनके बिना जी भी नहीं सकता अब मैं

मैं ऐसा हे हूँ और ऐसा ही रहूँगा
बदल नहीं सकता अपने आपको
अब तो बस चले जा रहा हूँ जीवन की इस राह पर आँख मूंदकर